Monday, August 27, 2012

ना ही वो कुछ कहा, ना ही कहने दिया .....

ना ही वो कुछ कहा, ना ही कहने दिया .....

इश्क खुद ना किया, ना ही करने दिया ।
जाने क्यूँ बे-वज़ह,फिर ये दिल ले लिया।।
उसने चेहरा दिखाया  न, सच है, मगर।
ना वो छुप के रहा , ना ही पर्दा किया।।


इश्क खुद ना किया, ना ही करने दिया ।
जाने क्यूँ बे-वज़ह,फिर ये दिल ले लिया।।

जिस गली से चला था , इश्क का सिलसिला।
दूर था उस गली से , वो इक दिन मिला।.
दिल की बातें लबों पर , थी आयीं ,मगर।.
ना ही वो कुछ कहा ना ही कहने दिया।.


इश्क खुद ना किया, ना ही करने दिया ।
जाने क्यूँ बे-वज़ह,फिर ये दिल ले लिया।।


कुछ तो हम थे बुरे,वक़्त भी था बुरा।
वर्ना यूँ वो हंसी,हमसे ना रूठता।।
पा सकें ना उसे हम , ये गम है ,मगर।
वो खुद किसी को ना पाया ,ना ही पाने दिया।।


इश्क खुद ना किया, ना ही करने दिया ।
जाने क्यूँ बे-वज़ह,फिर ये दिल ले लिया।।


हुस्न उसका था कातिल ,थी आँखें नशीं।
चेहरा ऐसा था जैसे,नवोदित कली।।
जीना हमने भी चाहा था, हंस के, मगर ।
ना मैं हंस के जिया ,ना ही मरने दिया।।


इश्क खुद ना किया, ना ही करने दिया ।
जाने क्यूँ बे-वज़ह,फिर ये दिल ले लिया।।



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