Saturday, December 22, 2012

मेरी गवाह

मुझे मालूम था पहले यही अंजाम है आगे ....
कि, राह-ए-इश्क में अक्सर मंजिल गुमराह होती है .....

तुझे पाना नहीं लिक्खा खुद ने दिल की किस्मत में .....
मगर फिर भी मेरे दिल को तेरी ही चाह होती है .....

काली रात भी पहले थी लगती चाँद-सी रोशन ....
अब तो रात की छोड़ो सुब्हें सियाह होती हैं .....

गुजरता हूँ तेरी गलियों से जब भी दीदार की खातिर .....
तेरी बातें, तेरी यादें मेरी हमराह होती हैं ......

सुकूं की है, दुआ करता उसी तारे से दिल मेरा .....
जो खुद टूटकर बिखरा है जिसमे आह!! होती है ....

ज़ेहन में कौंध जातीं हैं अचानक ही तेरी यादें ......
मेरे मायूस होने पर भी बे-परवाह होती हैं .....

सुना है, गौर से पढ़ते हो गज़लें तुम नवोदित की ..... 
चलो अच्छा है ! अब ये भी मेरी गवाह होती है ...........
-- आदित्य नवोदित --




 

Monday, August 27, 2012

ना ही वो कुछ कहा, ना ही कहने दिया .....

ना ही वो कुछ कहा, ना ही कहने दिया .....

इश्क खुद ना किया, ना ही करने दिया ।
जाने क्यूँ बे-वज़ह,फिर ये दिल ले लिया।।
उसने चेहरा दिखाया  न, सच है, मगर।
ना वो छुप के रहा , ना ही पर्दा किया।।


इश्क खुद ना किया, ना ही करने दिया ।
जाने क्यूँ बे-वज़ह,फिर ये दिल ले लिया।।

जिस गली से चला था , इश्क का सिलसिला।
दूर था उस गली से , वो इक दिन मिला।.
दिल की बातें लबों पर , थी आयीं ,मगर।.
ना ही वो कुछ कहा ना ही कहने दिया।.


इश्क खुद ना किया, ना ही करने दिया ।
जाने क्यूँ बे-वज़ह,फिर ये दिल ले लिया।।


कुछ तो हम थे बुरे,वक़्त भी था बुरा।
वर्ना यूँ वो हंसी,हमसे ना रूठता।।
पा सकें ना उसे हम , ये गम है ,मगर।
वो खुद किसी को ना पाया ,ना ही पाने दिया।।


इश्क खुद ना किया, ना ही करने दिया ।
जाने क्यूँ बे-वज़ह,फिर ये दिल ले लिया।।


हुस्न उसका था कातिल ,थी आँखें नशीं।
चेहरा ऐसा था जैसे,नवोदित कली।।
जीना हमने भी चाहा था, हंस के, मगर ।
ना मैं हंस के जिया ,ना ही मरने दिया।।


इश्क खुद ना किया, ना ही करने दिया ।
जाने क्यूँ बे-वज़ह,फिर ये दिल ले लिया।।