Saturday, May 25, 2013

"अप्प दीपो भव":-

अप्प दीपो भव- एक निर्मल सन्देश,,मेरे विचार से सारे बौद्ध साहित्य का सारांश इन तीन शब्दों में पूर्ण हो जाता है l पर अफ़सोस किसी ने इस सन्देश का सही अर्थ नहीं समझा l बुद्ध ने कहा था कि- वो स्वयं कोई अद्वितीय नहीं है उनका कहना था, उनके पहले भी कई बुद्ध हुए है और उनके बाद भी कई बुद्ध होंगे l पर अफ़सोस ऐसा हुआ नहीं l बुद्ध के ये विचार बताते है कि उन्होंने कभी किसी अन्य का अनुसरण करने कि प्रेरणा कभी नहीं दी... उन्होंने हमेशा स्वयं को जानने के लिए प्रेरित किया l "अप्प दीपो भव"- अपना दीपक खुद बनो l ऐसा कहा था उन्होंने न कि किसी और के सहारे चलने के लिए अथवा किसी और का अनुगामी होने के लिए l बुद्ध ने स्वयं कहा था कि उनके बाद कोई भी उनके नाम का पृथक धर्म ना चलाये, पर भारत इतना संस्कारग्रस्त देश है कि यहाँ के लोग अद्वितीय होने के बजाय दुसरो के जैसा बनना ज्यादा आसान और उचित समझते है,और वास्तव में ये आसान है भी क्योकि दुसरो से लड़ना और जीतना संभव है पर खुद का खुद से संघर्ष करना और जीतना शायद असंभव कि श्रेणी में आता है l और बुद्ध ने यही सन्देश दिया कि स्वयं को जीते बगैर दुखों से मुक्ति असंभव है l अगर किसी ने उनके सन्देश को ठीक तरह से समझा होता तो आज बौद्ध (धर्म) नहीं कई बुद्ध होते l बुद्ध ने भी यही चाहा था वो बौद्ध धर्म नहीं कई बुद्ध चाहते थे ताकि उनके उद्देश्य (विश्व को दुःख और तृष्णा से मुक्त करने का ) की पूर्ति हो सके l अब ज़रा सोचिये जब एक बुद्ध ने समाज में इतना बदलाव लाया कि एक नरसंहारी व्यक्ति (सम्राट अशोक) उनसे प्रभावित होकर एक धर्मपुरुष हो गया,,,अगर उनके उपदेशों का यथोचित पालन होता तो आज समाज;देश और विश्व का नक्शा ही कुछ और होता l