Sunday, June 2, 2013

इक यार मिला अनजाना सा ....

बचपन बीता जिन गलियों  में
जब बाहर  निकले उन गलियों से
बांगो में टहल रहे थे एक दिन
तब बांगों की प्यारी कलियों से
इक़ यार मिला अफसाना सा ....
इक यार मिला अनजाना सा ....

तन्हाई में खुश होकर भी
खुद में ही डूबी रहती जो
बर्फीले दिल वालों की
इस शमा सी जलती दुनिया में
इक यार मिला परवाना सा ....

इक़ यार मिला अफसाना सा ....
इक यार मिला अनजाना सा ....

लाख जतन करने पर मैंने
जब थोड़ी सी खुशियाँ पाई थी 
दिल तेज़ी से धड़का था 
पलकों पे नमी सी छाई थी 
गिरे नहीं आँखों से आंसू
आँखे भी तब पथराई थी 
जब ढूंढ रहे थे ऐसा कोई
जो हसता-रोता मेरे बदले  
तब चुपके से पीछे मेरे
इक यार मिला दीवाना सा

इक़ यार मिला अफसाना सा ....
इक यार मिला अनजाना सा ....

फुरसत के कुछ लम्हों में
जब यारों की महफ़िल जाती थी 
सोच-सोच पिछली बाते
बचपन की यादें जगती थी 
वो खेल अधूरा बचपन का 
पूरा करने का मन करता था 
जब फिर से बचपन जीने को 
बच्चो सा दिल ये मचला था 
तब पीछे से थपकी दे 
इक यार मिला बचकाना सा

इक़ यार मिला अफसाना ...
इक यार मिला अनजाना सा ....

अपने ही घर से निकले जो 
गुजरे अनजानी गलियों से 
जाने अनजाने चेहरो से 
भरी हुई इस दुनिया में 
जब सहमे-सहमे चलते थे 
डर-डर के आगे बढ़ते थे 
तब अलग भीड़ से दूर कही 
इक यार मिला पहचाना सा 

इक़ यार मिला अफसाना ...
इक यार मिला अनजाना सा ....

~ आदित्य नवोदित ~